ऋग्वैदिक असुर और आर्य​

Rigvedic Asur and Aryans

ऋग्वैदिक असुर और आर्य: असुर ही ईश्वर का पर्याय, भारत के मूल निवासी, वेदों के रचनाकार हैं ।

ऋग्वैदिक असुर और आर्य

असुर ही ईश्वर का पर्याय, भारत के मूल निवासी, वेदों के रचनाकार हैं ।

पुस्तक से लिए गए कुछ महत्वपूर्ण शब्द बिन्दु

  • पुस्तक अब तक के अनसुलझे असुर और आर्य सम्बन्धी सत्य का उद्घाटन करती है। इसके अनुसार ईश्वर असुर का पर्याय है। जिसे विश कुरमी कृषक मानव भी कहा जाता था जबकि आर्य शब्द गौर वर्णी जंगली असभ्य लोगों के लिए प्रयुक्त हुआ था। आर्य शीत प्रधान इक्कीस यूरोपीय आदि देशों से आए थे। इन्होंने अपनी मातृभूमि को स्वर्ग के रूप में याद किया।
  • सुर शब्द देव देवता का पर्याय न होकर सुरा पीने वाले आर्यों का पर्याय है। सुरों (आर्यो) ने भारतीयों से उनके देवता (सूर्य, चाँद, अग्नि इत्यादि गोरे देव) का सम्मान पाने के लिए खुद को देव कहना शुरू कर दिया।
  • भारत में आर्य विजेता बनकर नहीं, वरन् शरणार्थी बनकर आए। विजेता असुरों ने अन्ततः उनकी अप्सराओं (कन्याओं) के लालच में उन्हें शरण देकर बसा लिया।
  • भारत के मूल निवासी असुर कुरमी व्रात्य मनुष्य विश कीनास जैसे नामों से पहचाने जाते थे। वेद ऐसे ही असुरों का काव्य ग्रंथ हैं। सिन्धु सभ्यता का विनाश विशों असुरों ने किया।
  • इस देश के महान् वंश-सूर्य वंश, चन्द्र वंश, मानव वंश, इत्यादि असुर वंश हैं और उनके महान् चरित्र ब्रह्मा, विष्णु, इन्द्र, शिव, राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, रावण, कौरव, पाण्डव सभी असुर मानव हैं।
  • वैदिकोत्तर काल में लिखें गए रामायण, महाभारत, गीता, स्मृति, पुराण, धर्म-सूत्र जैसे ग्रन्थ अवश्य या तो आर्य ग्रन्थ हैं। अथवा उनमें मिलावट की गई है।
  • प्राचीन भारत भूलोक मनुष्य लोक कहा जाता था। यहाँ आने पर सुरों को भूसुर /भूदेव का जाने लगा, जो आगे चलकर ब्राह्मण वर्ण में अधिकतर स्थान पा गए।
  • आर्यों ने भारत में अपने माँसाहारी भोज को गोमेध, पशुमेध, अश्वमेध जैसे यज्ञों के रूप में प्रस्थापित किया, जबकि असुर कृषि कर्मी लोग थे।
  • असुरों की वैदिक संस्कृति ही असली हिन्दू संस्कृति है। स्वर्ग-नरक, मोक्ष, माया, वरिक्षण पर आधारित संस्कृति वैदिक संस्कृति के विरुद्ध विद्रोह स्वरूप पैदा हुई है।

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