About Dr. Nirmohi

My Story

          डॉ. श्याम लाल निर्मोही एक समाज वैज्ञानिक चिन्तक, लेखक, कवि, राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय सेमीनारों/ सम्मेलनों में सौ से अधिक शोधपत्रों का वाचन तथा काव्य पाठ, आपातकालीन भूमिगत पत्र ‘लोकमित्र’ कॉलेज पत्रिका ‘चेतना’ तथा हिन्दू जागृति, दलित अस्मिता प्रज्ञा साहित्य, हमारी विरासत, दुर्गा ज्ञान ज्योति, सन्देश हलचल, विश्य कम्पन जैसी दर्जनों पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन, रेडियो तथा टेलीविजन केन्द्रों से गीत आदि का प्रसारण, दैनिक समाचार पत्रों तथा प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में हजारों वक्तव्यों आदि का प्रकाशन भी कर चुके हैं ।

         डॉ. निर्मोही का जन्म  10 जनवरी 1947 को  ग्राम जसवां, पो. अहरौरा, चुनारगढ़, जनपद मीरजापुर (उ.प्र.) में हुआ था । उन्होंने अपनी शिक्षा एम. ए. समाज विज्ञान (बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी B.H.U.) से तथा अपनी पी.एच.डी. लखनऊ विश्व विद्यालय, लखनऊ (उ.प्र.) से पूरी की

          ग्रन्थ के लेखक डॉ. श्याम लाल उर्फ डॉ. श्यामलाल सिंह देव निर्मोही  भारतीय समाजशास्त्रीय जगत में एक फायर ब्राण्ड तथा रेडिकल समाज शास्त्री के रूप में पहचाने जाते हैं। आप नयी तथा पुरानी पीढ़ी के समाजशास्त्रियों में अपना विशिष्ट स्थान रखते है। आपने अपने शोधपत्रों तथा अपनी पुस्तकों के माध्यम से नयी-नयी प्रस्थापनाएं देकर समाजशास्त्र के क्षेत्र में क्रान्ति की शुरुआत कर दी है। आप का लेखन खोखले, तर्कहीन, अवैज्ञानिक ब्राह्मवादी चिन्तन पर वज्राघात के समान है। आपकी नयी खोजों तथा प्रस्थापनाओं को खण्डित करने का साहस आज तक किसी ने भी नहीं दिखाया है, क्योंकि आप का लेखन वैज्ञानिक प्रमाणों से युक्त तथ्यात्मक होता है। आपने वैदिक भारतीयों (असली हिन्दुओं) के वेदों के साथ ही वैदिकोत्तर काल में जन्में ब्राह्म धर्म के तथाकथित धर्म ग्रन्थों-ऐतरेय ब्राह्मण, तैत्तिरीय ब्राह्मण जैसे ब्राह्मण ग्रन्थों, धर्मसूत्रों, रामायण, महाभारत, स्मृतियों तथा पुराणों इत्यादि के गहन अध्ययन के बाद उनमें से मोती खोजे हैं और भारतीय समाज, जाति, वर्ण, आश्रम, पुरुषार्थ, धर्म, संस्कृति, पुनर्जन्म, भाग्य, मोक्ष, स्वर्ग-नरक से जुड़े ब्राह्मवादी चिन्तन की धजियाँ उड़ाते हुए उनमें छिपे सत्य का उद्घाटन इतने वैज्ञानिक ढंग से किया है कि लोग खण्डन करने की हिम्मत नहीं करते। भारतीय समाज, संस्कृति, धर्म, जाति, वर्ण के क्षेत्र में आपकी खोजों ने भारतीय कृषक, दलित जैसी शोषित-पीड़ित जातियों के इतिहास को सामने लाने का कार्य किया है। वैदिक चिन्तन के विरुद्ध पैदा हुआ वैदिकोत्तर चिन्तन आपके वैज्ञानिक खोजों के आगे कहीं भी टिकने वाला नहीं है। लीक से हटकर आपकी समाज वैज्ञानिक खोजों में से कुछ को देखना उचित होगा- 

  1. प्रथम मनु मानव जाति की माँ थी। यह कूर्म कश्यप उपनाम ब्रह्मा की पत्नी थी। शतरूपा भी मनु का ही दूसरा नाम था।
  2. स्वर्ग उत्तरी विश्व (यूरोपीय प्रदेशों) के राष्ट्रों को कहा गया था, जहाँ से आर्य ब्राह्मण भारत आये थे। इसीलिए वे अपनी जन्मभूमि स्वर्ग को याद करते और स्वर्ग जाने की कामना करते हैं।
  3. उनके (आर्य ब्राह्मणों) के लिए स्वर्ग में पहुँच जाना ही मोक्ष है।
  4. उनके धर्म ग्रन्थों में भारत भी एक नरक लोक है। शेष 20 नरक मध्य विश्व के राष्ट्रों को कहा गया है।
  5. दक्षिणी विश्व के सात देश सात पाताल हैं।
  6. माता मनु की मानुषीकरण/भूमण्डलीकरण ने अन्ततः तीनों लोकों को मनुष्य लोक का हिस्सा बना दिया तो ब्राह्मणों ने स्वर्ग नरक को आसमान में पहुंचा दिया।
  7. आर्य का मूल्य अर्थ जंगली असभ्य है। ये भारत में विजेता बनकर नहीं, वरन् शरणार्थी के रूप में आये थे।
  8. असुर (ईश्वर/देवता) भारत के मूल निवासी, त्रिलोक विजेता (विश्व के शासक) वेदों के रचनाकार थे। शद्रों/दलितों की उत्पत्ति इन्हीं से बतायी गयी है।
  9. इन्द्र आर्य न होकर कृषक सम्राट महाकुर्मी थे। वे वेदों के सर्वश्रेष्ठ असुर सम्राट तथा देवता थे।
  10. ब्रह्मा, विष्णु, शिव, राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, चार्वाक, बृहस्पति इत्यादि असुर तथा कृषक थे।
  11. सुर का अर्थ देवता न होकर सुरा पीने वाला अर्थात् शराबी होता है।
  12. विदेशी आर्य या सुर ही सुर से भूसुर और अन्ततः ब्राह्मण बन गये।
  13. होली विश्व का पहला नववर्षोत्सव है और दीवाली दीवालों की मरम्मत तथा धान के जन्मोत्सव का पर्व है।
  14. महाशिवरात्रि विश्व का पहला प्रेम दिवस है। शिवलिंग पूजा में नर-नारियों के सृजन यंत्र कल्याणकारी लिंग (स्त्रीलिंग तथा पुल्लिंग) को स्वस्थ रखने का संकेत है।
  15. देवथान एकादशी ईख (गन्ना) का विवाहोत्सव है।
  16. बरसात के चार माह अर्थात् चातुर्मास जैसे सृजनात्मक माहों (चार माहों) में सोने वाला विष्णु कृषकों के देश का सबसे बड़ा दुश्मन है।
  17. भारत की जातियाँ जनजातियों से रुपान्तरित होकर अस्तित्व में आयी हैं।
  18. गणेश विश्व के सबसे बड़ा चूहामार और दलित (शूद्र) मूसहर जाति के नायक थे। उनके द्वारा चूहों के विनाश के कारण वे कृषक भारत के देवता बन गये। दूसरी तरफ लक्ष्मी का उल्लू भी सबसे बड़ा चूहामार है। इसीकारण लक्ष्मी धान (धन) की देवी बनी।
  19. भारतीय संविधान ही भारतीयों का असली धर्म ग्रन्थ है।
  20. आज की सिन्धु ही वैदिक सरस्वती है, जो आज के पाकिस्तान में बह रही।
  21. दलित/शूद्र विभिन्न जातियों, वर्णों के सम्राटों को कुचलकर बनाये गये लोग हैं। बदले की भावना से ही विजितों को दलित बनाया गया।

इसी प्रकार की अन्य हजारों नयी खोजों के द्वारा आपने भारतीय सामाजिक-सांस्कृतिक क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन का सूत्रपात कर दिया है। अभी तक ब्राह्मवादी अज्ञान आधारित चिन्तन का कचरा ही सर्वत्र फैला हुआ है। डॉ. निर्मोही आधुनिक वैज्ञानिक भारत के निर्माण के लिए वैज्ञानिक समाजशास्त्रीय पाठ्यक्रम की रूपरेखा दे रहे हैं। आपका लेखन बहुजनों की सत्ता के लिए पाठ्य पुस्तक का कार्य करेगा।

 डॉ. निर्मोही एक उच्च कोटि के कवि भी हैं। उनकी अनुपम काव्यशैली वर्तमान समय में भी हर आयु के लोगों बड़े, बूढ़े यहाँ तक कि बच्चों को भी प्रभावित करती है।  

प्रकाशित ग्रन्थ 

  1. मुक्ति यज्ञ (आपात काल का इतिहास) 1978;
  2. आदि माता मनु और मानुषीकरणः प्राचीन विश्व का एक वैज्ञानिक अध्ययन, 1999;
  3. ऋग्वैदिक असुर और आर्य 2007;
  4. लक्ष्मी-गणेश का आर्थिक समाजशास्त्र, 2008;
  5. उत्सवों का समाजशास्त्र, 2009;
  6. हिन्दू संस्कृति के बारह सच, 2009;
  7. भारत की जातियां: उद्भव एवं विकास 2010;
  8. कथानिका ( कथा संग्रह )
  9. सम्राटों के वंशज दलित ( दलित पिछड़ों का गौरवशाली इतिहास )
  10. भगवान् की अवधारणा: उदभव एवं विकास
  11. आग की देवी महादेवी
  12. गौतम बुद्ध का वैज्ञानिक समाज दर्शन: आधुनिक परिप्रेक्ष्य
  13. बाबा आदम महर्षि कश्यप उर्फ़ सृष्टिकर्ता ब्रह्मा
  14. कालिया का लोहा
  15. वैदिक सरस्वतीः मरी नहीं जिन्दा है
  16. आरक्षण की धुरी पर
  17. अथातो ब्रह्म जिज्ञासा
  18. होली नव् वर्षोत्सव
  19. मुक्तिदाता नारी
  20. धार्मिक चिंतन पर नया प्रकाश
  21. नयी महाभारत
  22. एकलव्य का अंगूठा
  23. रूस में आठ दिन
  24. ऋग्वेदिक खूनी क्रांति और साम्यवाद
  25. संविधान की वंदना का गीत है राष्ट्रगान
  26. संवरिया के आंख जैसे हिन्दी तथा भोजपुरी काव्य संग्रह।

अप्रकाशित ग्रन्थ 

  1. धर्म और अध्यात्म: एक विज्ञान
  2. हिन्दू धर्म और ब्रह्मन धर्म
  3. भारतीय सामाजिक व्यवस्था: नया परिप्रेक्ष्य
  4. भाषाओं की बेटी संस्कृत
  5. आर्यों पर विजय का प्रतीक: हिन्दू विवाह
  6. स्वर्ग और नरक का विज्ञान
  7. कृषक सम्राट इन्द्र
  8. मोक्ष का सत्यार्थ
  9. अतीत के नये सन्दर्भ
  10. शूद्र कहां से आये
  11. देखो भगवान
  12. कथानिका – भाग 2
  13. चिन्तन के नये स्वर

सम्मान :

विभिन्न संस्थाओं द्वारा कलम रत्नसमाज रत्नशिक्षक रत्नपटेल रत्नसाहित्य गौरवफर्रुखाबाद  गौरवसाहित्य श्रीशिखर श्रीप्रज्ञा पुरुषविज्ञान गौरवप्रज्ञा भारतीराष्ट्र गौरवसंस्कृति प्ररोघाइतिहास पुरुष जैसे सम्मानों से सम्मानित।

Feedback & Reviews

“अपनी हजारों नयी खोजों के द्वारा आपने भारतीय सामाजिक-सांस्कृतिक क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन
का सूत्रपात कर दिया है। अभी तक ब्राह्मवादी अज्ञान आधारित चिन्तन का कचरा ही सर्वत्र फैला हुआ
है। डॉ. निर्मोही आधुनिक वैज्ञानिक भारत के निर्माण के लिए वैज्ञानिक समाजशास्त्रीय पाठ्यक्रम की
रूपरेखा दे रहे हैं। आपका लेखन बहुजनों की सत्ता के लिए पाठ्य पुस्तक का कार्य करेगा।”

 

साहित्य भूषण डॉ. राम कृष्ण राजपूत (डी. लिट.)

निदेशक – अहिच्छत्रा संग्रहालय, फर्रुखाबाद

 

इस शोध ग्रन्थ “ऋग्वैदिक असुर और आर्य” के माध्यम से डा. श्यामलाल निर्मोही ने आर्यों के मूल निवास के रूप में उत्तरी विश्व के 21 शीत प्रधान देशों को 21 स्वर्ग लोक, नर/मनुष्यों के घर अर्थात मनुष्य लोक के 21 देशों को 21 नरक लोक तथा दक्षिणी विश्व के राष्ट्रों को सात पाताल सिद्ध कर स्वर्ग-नरक के अज्ञानान्धकार में डूबे विश्व को ज्ञान का आईना दिखाया है। इसके साथ ही आपने असुरों को भारत के मूल निवासी, वेदों के रचनाकार, आर्यों के शरणदाता. विश्व विजेता सिद्ध कर विश्व के नये इतिहास की आधारशिला रख दी है।

 

डॉ. विवेक कुमार

समाज विज्ञान विभाग, J.N.U.नई दिल्ली

 

“समकालीन भारतीय समाजवैज्ञानिक क्षेत्र में डा० श्याम लाल सिंह देव “निर्मोही” किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं । आप समाजशास्त्रीय जगत में अपनी नयी-नयी प्रस्थापनाओं के लिए पहचाने जाते हैं। भारतीय समाजशास्त्र के क्षेत्र में तो आप की कृतियाँ अदभुत देन मानी जायेगी। प्रतिष्ठित समाज शास्त्री तथा समाज विज्ञान संस्थान आगरा  विश्वविद्यालय आगरा के प्रोफेसर राजेश्वर प्रसाद जी ने पुस्तक की
भूमिका में आपको रेडिकल तथा फायर ग्राण्ड समाजशास्त्री ठीक ही कहा है। पत्रकारिता, साहित्य तथा सामाजिक कार्यों के क्षेत्र में भी आपकी अपनी पहचान है। पुरानी पीढ़ी से लेकर नयी पीढ़ी तक के आप चहेते मित्र हैं ।”

 

डॉ० राजनाथ सिंह

एशोसिएट प्रो० समाजशास्त्र, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी

 

What I want from You?

Need a copy?

Mostly all the books are available on major e-commerce platforms like Amazon, flipkart and on publishers website. In case it is not available on any of them, mail me, will do the needful.