कालिया का लोहा
Victory of Black
Table of Contents
विषय सूची
प्राक्कथन
अपनी बात
अभिमत 1
अभिमत 2
अध्याय 1- काला का विज्ञान और उसका स्वरूप
अध्याय 2- काला का अध्यात्मशास्त्र
अध्याय 3- काला का सौन्दर्यशास्त्र और कामशास्त्र
अध्याय 4- काला का अर्थशास्त्र
अध्याय 5- काला का धर्मशास्त्र
अध्याय 6- काले मानव ही गोरों के भी आदि माता-पिता
अध्याय 7- गोर ब्राहमणों द्वारा कालों की पूजा का रहस्य
अध्याय 8- कालों के प्रति घृणा की दूषित मानसिकता और उसके कारण
अध्याय 9- रंगभेद/नस्लभेद समस्या का एकमात्र समाधान काला का भविष्य
परिशिष्ट- काला ब्रहम ग्रन्थ वर्णना
लेखक की कलम से...
अपने पर गर्व करो, दुनियाँ छोटी हो जायेगी “कालिया का लोहा, दुनिया मानने लगी है” पुस्तक संसार की नस्ल भेद समस्या के निदान की दृष्टि से लिखी गयी हैं। एक बार मेरे साथ एक घटना घटी। ट्रेन में सफर करते समय आपस में चर्चा हो रही थी। मानो सम्पूर्ण डिब्बा चर्चा में भाग ले रहा था। लोग अपनी-अपनी सीट छोड़कर एक जगह एकत्र हो गये थे और चर्चा में भाग ले रहे थे। चर्चा वर्ण और जाति को लेकर हो रही थी। काले-गोरे सभी प्रकार के लोग थे। चर्चा में मेरा पलड़ा भारी पड़ रहा था। इसी बीच एक गोरे युवक ने किसी बात से चिढ़कर मेरे शरीर के रंग को रेखांकित करते हुए एक फिल्मी डॉयलाग बोला- “तेरा क्या होगा रे कालिया?” मैंने नहले पर दहला मारते हुए उसके गोरा रंग को रेखांकित करते हुए तपाक से कहा- “आ जा रे गोरिया”। सभी लोग मेरा मुंह देखने लगे। मुझे कालिया कहने वाला तमतमा उठा। बोला ये क्या बदतमीजी हैं। मैं क्या तुम्हें गोरी नजर आ रहा हूँ। मैंने सहज भाव से मुस्कुराते हुए कहा-मित्र! मैंने तो तुम्हारी भाषा में ही जवाब दिया है। तुमने मुझे मेरे शरीर के रंग के आधार पर ही तो काला से कालिया कहा तो मेरा सिर गर्व से ऊँचा हो गया कि चलो किसी ने तो मुझे साजन/सांवरिया/कालिया कहा। कालिया पुरूष का (पौरूष का) प्रतीक है। तुमने मुझे पुरूष, (पौरूष) के रूप में ही तो कालिया कहा। इसलिए मुझे अच्छा लगा। भले ही तुम्हारी मंशा कुछ रही हो। मैंने तो तुम्हारी भाषा में तुम्हें गोरा से गोरिया कहा, जैसे काला से कालिया, तुमने मुझे कहा। इसमें बुरा मानने की क्या बात हैं? देखा जाये तो तुमने स्वयं अपने को गोरिया (सुन्दरी नारी) कहने के लिए ही तो मझे बाध्य किया। लोग बोल पड़े- “भाई साहब! आपने क्या करारा जवाब दिया कि उसकी बोलती बन्द हो गयी। पास में बैठी उसकी पत्नी बोली- “तुम सही आदमी से उलझ गये। चलो उठो यहाँ से किसी और डिब्बे में चले।” फिर क्या नजरें झुकाए वे दोनों उठकर अन्यत्र चले गये।
इस घटना से मेरे भीतर स्वाभिमान का उदय हुआ। मानों रंग भेद/नस्ल भेद की समस्या का मुझे हल मिल गया। तभी से मैं कहने लगा-“अपने रंग/कर्म, योग्यता आदि पर गर्व करो दुनिया छोटी हो जायेगी।” समाज में जाति भेद, वर्ग भेद के साथ ही रंग भेद अर्थात काले-गोरों के बीच नस्ल भेद पाया जाता है। गोरे सफेदअंग्रेज तो पहले मानने के लिये तैयार न थे कि अफ्रीका, भारत जैसे देशों के काले निवासियों में परमात्मा ने पवित्र आत्मा डाली होगी। वे तो उन्हें मनुष्य मानने को भी तैयार न थे। वे तो उनसे घृणा करते थे और उनसे दूर रहते थे। महात्मा गाँधी जैसे काली चमड़ी वाले मनुष्य को भी उन्होनें ट्रेन के डिब्बे से बाहर फेंक दिया था क्योंकि वे गोरों के डिब्बे में बैठ गये थे। वे कालों से इतनी घृणा करते थे। उनके लिए काले लोग मानों कीड़े मकोड़े थे। एक समाजिक प्राणी तथा समाजशास्त्री लेखक होने के नाते मेरा कर्तव्य था कि मैं इस समस्या का समाधान दूं। ट्रेन
की उस घटना ने मुझे समाधान दे दिया था। मुझे लगा कि यदि काले लोग अपने रंग, कर्म, ज्ञान, योग्यता इत्यादि पर गर्व करने लगे तो गोरा का अहंकार चकनाचूर हो जायेंगा। मैनें देखा है कि मानववाद और विज्ञान के अनुसार सभी मनुष्य है, परमात्मा, ईश्वर, खुदा, ने काले गोरे सभी को पैदा किया है। सभी एक ही पिता (ईश्वर) की सन्तान है जैसी शिक्षाओं का गोरों पर कोई असर नहीं होता है। इसलिए मुझे लगा कि गोरों से अपेक्षा न रखी जाये कि वे काले मनुष्यों से घृणा न करें। उनसे प्यार करें। मुझे लगा कि यदि काले लोग अपने पर गर्व करने लगें तो गोरे अपने आप ठीक हो जायेंगे। यह पुस्तक इसी उद्देश्य की पूर्ति की दृष्टि से लिखी गयी है। इसमें कालों के लिए गर्व करने के अनेक आधार, तथा सूत्र खोजे गये हैं। इसमें काला के विज्ञान के साथ ही काला का धर्मशास्त्र, अध्यात्म, शास्त्र, काला का अर्थशास्त्र के साथ ही कालों के कामशास्त्री स्वरूप का भी वैज्ञानिक चित्रण किया गया है तथा कालों के समाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक, धार्मिक, राजनीतिक योगदान को भी रेखांकित किया गया है। ये सभी चीजें कालो के लिये गर्व की चीज हैं। यह पुस्तक न किसी (गोरों) से अपेक्षा रखती है कि वे काले गोरे का भेद न करें। सभी से प्यार करें। यह तो केवल कालों को स्वयं पर गर्व करने और गर्व से सीना तानकर चलने की शिक्षा देती है। हाँ गोरों को सही ठंग से सोचने और व्यवहार करने की प्रेरणा अवश्य देती हुई दिखायी देती है।
मैंने विरोधियों (गोरे भूसूर ब्राहमनों) द्वारा लिखे गये काले असुरों विशेषकर रावण, उसकी लंका के वैभव (सोने की लंका) के चित्रण में देखा कि दुश्मन लेखकों (वाल्मीकि तुलसी इत्यदि) ने भी रावण उसके राज्य, उसके सोने की लंका इत्यादि का गुणगान किया है। रामायण के साथ ही महाभारत जैसे ग्रन्थ भी असुरो की शक्ति का चित्रण करते है। असुर-आर्य संघर्ष में असुरों से हारकर गोरे आर्यो (नकली देवों) को काले असुर महामानवों-इन्द्र, ब्रह्मा, शंकर, विष्णु इत्यादि की शरण में जाकर अभयदान मांगते हुए देखा गया है। काले असुर महामानवों के अभयदान के बाद ही उन्हें सुरक्षा प्राप्त होती है। ऐसा चित्रण सभी वैदिकोत्तर पौराणिक ग्रन्थों में किया गया हैं। ऐसे असुरों के विरोधियों, उनके दुशमनों ने लिखा हैं। जिनकी प्रसंशा दुश्मनों ने की हों, भला वे अपने पर गर्व क्यों न करें। वेदों में तो काले असुरों को देवता ईश्वर विधाता, विश्व विजेता तक कहकर उनकी स्तुति में अनेकों मंत्र लिखे गये हैं। फिर काले गर्व क्यों न करें। गोरे भूसुर ब्राहमणों ने रामायण, महाभारत, गीता, भागवत जैसे अपने ग्रन्थों में काले रावण, कंस जैसे असुरों के साथ ही काले लोगों के प्रति घृणा फैलायी है।
राम, असुर कृष्ण, काले असुर कौरव-पाण्डवों का ही गीत गाया हैं। गोरों में तो शायद कोई महामानव, कोई नायक, कोई खलनायक तक था ही नहीं कि उसे वे अपने काव्य, महाकाव्य का विषय बनाते। यह भी कालों के लिये गर्व की बात रही है। भारत में गोंरे ब्राहमणों/असुरो/आर्य वंशजों द्वारा लिखे गये सभी ग्रन्थ एक प्रकार से कालों की प्रसंशा से भरे है। उनमें पक्ष-विपक्ष, नायक-खलनायक दोनों पक्षों में सभी काले असुर ही हैं। प्राचीन काल के ब्रहमा, शिव, विष्णु, इन्द्र बृहस्पति, राम, रावण, कृष्ण, कंस, बुद्ध/महावीर/चाणक्य जैसे महामानव काले असुर ही है। ऐसा प्राचीन ग्रन्थ चिल्लाकर कहते हैं फिर काले लोग अपने पर गर्व क्यों न करें। असुर की विस्तृत जानकारी के लिये देखें लेखक डॉ० निर्मोही की शोध कृति “ऋग्वेदिक असुर और आर्य”।
संसार के प्राचीनतम और पवित्रतम ग्रन्थ वेद जहाँ पर असुरों द्वारा लिखे गये है, वही पर भूसुरों/ब्राहमनों द्वारा लिखे गये रामायण, महाभारत, गीता, भागवत जैसे पुराणों की विषयवस्तु चरित्र-चित्रण, इतिहास इत्यादि सब कुछ कालों के चित्रण से ही भरे हैं। गोरों के पास अपनी गोरी जाति में शायद कोई नायक तथा खलनायक भी न थे तभी तो उन्होंने अपनी पुस्तकों में नायक तथा खलनायक दोनों पक्षों में असुरों (कालों) को ही रखा। यह भी काले भारतीयों/द्रविणों/असुरों के लिए गर्व की चीज है। विशेषकर दक्षिण भारतीयों तथा अफ्रीकन कालिया के लिये यह गर्व की बात है। उन्हें इस पर गर्व करने का पूरा अधिकार है। निश्चय ही यह पुस्तक काले भारतीयों, अफ्रीकनों के भीतर गर्व पैदा करने, उनके स्वाभिमान को ऊँचा उठाने के उद्देश्य से लिखी गयी है। यह अपने उद्देश्य में कितना सफल होती है। इसे तो समय और पाठक ही बता सकेंगे। मेरा काम तो केवल लिखना था और मैंने लिख दिया गोरों के भीतर कालो के प्रति घृणा क्यो पैदा हुई, मैंने उसके कारणों की भी खोज की है और उसे भी बारहवें अध्याय में दिया है। ऐसा इसलिए किया गया, जिससे विश्व नश्ल भेद की तह में जा सके और समाधान की दिशा में पहल कर सके। इतना ही नहीं जब तक नस्लभेद की समस्या का कारण ज्ञात न हो, उसके इतिहास को न जाना सके तो समस्या का समाधान कठिन होता है। इसलिए कालों के प्रति गोरों की घृणा/नफरत के पैदा होने के करणों को भी संक्षेप में दिया गया है। जिससे लोग समस्या को समझ सके और उसका निदान प्रस्तुत कर सके।
अभी 2018 में सहारनपुर में दो पुस्तकों के लोकार्पण के अवसर पर मुझे मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया गया था। कविवर हरिराम पथिक की दो पुस्तकों का लोकार्पण था। जिसमें एक बालकृति (बालगीत) का नाम “काला गुब्बारा” था, जिसमें एक काले ने गुब्बारे वाले से प्रश्न किया कि हे गुब्बारे वाले तुम्हारे ये लाल, पीले, हरे, नीले, सफेद गुब्बारे आसमान में उड़ रहे हैं। क्या यह काला गुब्बारा भी उड़ेगा? गुब्बारा वाला बोला- हाँ, यह काला भी उड़ेगा। तुम भी इन गुब्बारों की तरह आसमान की ऊँचाई छू सकते हो। बस तुम्हारे भीतर ज्ञान प्राप्त करने, ऊँचाई छूने की ललक पैदा होनी चाहिए। मैंने इस की समीक्षा में काला के विज्ञान को सबके सामने रखा तो कार्यक्रम में उपस्थित विद्वान आचम्भित होकर रह गये। पहली बार काला रंग, काले आदमियों का महत्व उनके सामने रखा गया था। अध्यक्षता कर रहे विद्वान भारत भूषण जैसे सन्यासी ने तो प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कह दिया कि पहली बार काला का विज्ञान सुनने को मिला। उन्होंने इसके लिए आयोजकों को धन्यवाद भी दिया कि ऐसे मनीषी को मुख्य अतिथि बनया गया। मैंने भी उनके ऐसे विश्लेषण पर उन्हें धन्यवाद दिया। उसी दिन रास्ते में वापस आते हुए मैंने निर्णय लिया कि काला के विज्ञान अथवा काला पर पुस्तक अवश्य लिखूंगा। यह पुस्तक उसी के देन है। इसके लिए में साहित्यकार हरिराम पथिक तथा उनकी संस्था विभावरी के सदस्यों के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ। मैं ट्रेन से वापस आ रहा था। मुझे कालिया कहने वाले उस अनाम गोरिया (गोरा पुरूष) को मैं कैसे भूल सकता हूँ। उसने यदि मुझे कालिया कहकर चुनौती न दी होती तो शायद मेरे भीतर का पुरूषत्व न जगा होता और मेरा साहित्यकार मन सोचने को विवश न हुआ होता तो यह पुस्तक अस्तित्व में भी न आती। इसलिए मैं उस अनाम गोरे पुरूष को उसी की भाषा में काला से कालिया की तरह गोरा से उसे गोरिया न कहता। मैं उसको भी जगाने के लिये धन्यवाद देता हूँ। मैं तमिलनाडु के चैन्नई, विनाल्ली, तथा तेलंगाना प्रदेश के हैदराबाद जैसे दक्षिण भारतीय नगरों की यात्रा में वहाँ की सभ्यता संस्कृति को देखा तथा उनके प्रति उत्तर भारतीयों अपेक्षाकृत कम कालों के व्यवहारों को देखकर अचाम्भित भी हुआ। दक्षिण भारतीय, जिन्हें लोग द्रवित कहते है, जो वास्तव में वैदिक श्रेष्ठ असुरों कालों) के वंशज हैं, के प्रति अपेक्षाकृत कालों के व्यवहार को भी देखा हैं। उससे मेरा मन अत्यन्त दुःखी हुआ कि गोरों की वर्ण संकर जाति संकर दोगली) सन्तानें किस प्रकार काले द्रविणों के प्रति हीन भावना रखती हैं। और उनका मजाक उड़ाने से बाज नहीं आती हैं। मी उत्तर भारतीयों की कालों के प्रति धारणा के काराण मेरा मन उद्वेलिन हआ। इस पुस्तक के प्रणयन में मेरी दक्षिण भारत दिविण देश भारत) की यात्रा और उत्तर भारतीयों की धारणा का भी हाथ है। इसके लिए मैं दक्षिण भारतीयों को नमन तथा उत्तर भारतीयों की धारणा के प्रति घृणा का भी भाव प्रदर्शित करता हूँ कि दोगली वर्ण संकर सन्तानों को इतना गर्व क्यों है? यह पुस्तक मेरे जन्म माह जनवरी की उपलब्धि है। एक जनवरी से 28 जनवरी के बीच यह पुस्तक पूर्ण हुई। इसीलिए जनवरी 2019 को भी मैं धन्यवाद दिये बिना कैसे रह सकता था मैं अपने जन्म माह (10-1-1947) जनवरी के प्रति भी आभार व्यक्त करता हूँ। क्योंकि जनवरी 2019 में इसके लेखन का सुयोग मुझे प्राप्त हुआ। मुझे ज्ञात है कि संसार के अनेक देशों में फैले उत्तर भारतीय मूल के काले और अफ्रीकन कालिया (black) लोग किसी सफेद नायक को काले रंग में रंगकर उसे अपने नायक के रूप में मानकर उस पर श्रद्धा करते है और उसे अपना आदर्श मानकर उसकी पूजा अर्चना करते हैं। उसके विचार आप के हित में हो सकते है, परन्तु वह आप का पूर्वज मार्गदर्शक नहीं हो सकता। आप उसके विचारों का स्वागत कर सकते है, परन्तु आप अपना नायक, अपना आदर्श किसी काले पुरूष को ही स्वीकार कर उसका चित्र अपने पास रख सकते हैं और उसके प्रति अपनी भक्ति का प्रदर्शन कर सकते हैं। आपके सामने ब्रहृमा, इन्द्र, पृथु जैसे वैदिक कालिया के साथ आधुनिक जगत के मार्टिन लूथर, नेल्सन मण्डेला जैसे कालिया आप के आदर्श नायक, भगवान, सन्देश वाहक पैगम्बर या सुसमाचार लाने तथा कालों के उत्थान के लिए कार्य करने वाले महामानव हो सकते हैं। मैं इस पुस्तक के माध्यम से विश्व के देशों में फैलें काले मानवों के लिए गर्व या स्वाभिमान की कामना करता हूँ और प्राकृतिक धूप, वर्षा से दूर होने के करण पत्थर के नीचे दबी दूर्वा घास की तरह सफेद हो गये गोरों (सफेद मानवों) के लिए सदबुद्धि की भी कामना करता हूँ |
एक समाज शास्त्री होने के नाते मेरे सैकड़ो साथियों, समाजशास्त्र के प्रोफेसरों, मित्रों राजनीतिज्ञों ने मुझे सामाजिक समस्याओं पर लेखनी चलाने का अग्रह किया था। अनेक मेरी पुस्तके इसी आग्रह/प्रेरणा की देन हैं। नश्ल भेद की समस्या पर भी लिखने के लिए ऐसे ही मेरे मित्रों साहित्यकारों ने आग्रह किया था। यह पुस्तक उन्ही के आग्रह की देन हैं। मैं ऐसे हजारों प्रेरकों के प्रति भी आभार व्यक्त करता हूँ।
पुस्तक को आप सभी पाठकों के हाथों या समाज को समर्पित करते हुए मुझे अपार हर्ष हो रहा है। मैंने पूरी कोशिश की है कि पुस्तक वैज्ञानिक धरातल पर तथ्यों तथा तार्किकता से युक्त हो। मैं अपने इस प्रयास में कितना सफल हुआ हूँ। इसे तो समय और आप जैसे सुधी पाठक ही बता सकेंगे। आपका मृत्याकन मेरा उत्साहवर्द्धन करेगा। आप की समीक्षात्मक टिप्पणी का इन्तजार रहेगा।
